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Friday, 28 September 2012


क्‍यों है आवश्‍यक आरक्षण  ?

 

मनु ने अछूतों के लिए निम्‍नलिखित सिद्धान्‍त बनाए और इन सिद्धान्‍तों को धर्म ग्रन्‍थों में लिख दिया। आओ जरा देखे कौन से थे वह सिद्धान्‍त ;

 

(i)            अछूत गॉंवों की परिधि पर रहेंगे।

(ii)           अछूत नए वस्‍त्र कभी नहीं पहनेंगे

(iii)          अछूत किसी भी प्रकार की शिक्षा ग्रहण नहीं करेंगे।

(iv)         अछूत धातू के बर्तनों में भोजन नहीं करेंगे।

(v)          अछूत सोने-चॉंदी के आभूषण नहीं पहनेंगे।

(vi)         गधे तथा कुत्‍ते के अलावा उनकी कोई सम्‍पत्ति नहीं होगी।

 

आज न ही मनु है और न तो मनु द्वारा लिखित मनुस्‍मृति की कानूनी मान्‍यता। डा. बी.आर. अम्‍बेडकर ने अपनी विद्वता, साहस और संघर्ष से मनुवाद के सिद्धान्‍त को गहरे गढ्ढे में दफन कर दिया है । परन्‍तु मनुवाद में विश्‍वास रखने वाले करोड़ों लोग इस समाज में आज भी विद्यमान हैं, जो दलितों, पिछड़ों एवं जनजातीय लोगों के अच्‍छी जिन्‍दगी जीने के सपने से ही डर जाते हैं। वह इस कोशिश में लगे रहते हैं कि ;

 

(i)         वह ड्राइवर बनें।

(ii)        वह चौकीदार बनें।

(iii)      वह मजदूरी करें।

(iv)     घरों में कूड़ा उठाने वाले बनें।

(v)       फैक्ट्रियों में काम करने वाले बनें।

(vi)     यह लोग छोटी-मोटी सरकारी व गैर सरकारी नौकरी करें।

 

क्‍या यह मनुवाद नहीं है ?

क्‍या कभी आपका संवेदनशील मन आपको इस पर सोचने को प्रेरित करता है ?

 

       भारत में सभ्‍यता का इतिहास करीब 5000 वर्षों का है । करीब 3500 वर्ष पूर्व मध्‍य एशिया से आए आर्यों ने इस भूमि पर अपनी सत्‍ता कायम की है। शुरू से ही भारत में दो सामाजिक सांस्‍कृतिक और धार्मिक विचार धाराओं में द्वन्‍द (विरोध) रहा है। इन दो विचार धाराओं को श्रमण और ब्राह्मण शब्‍दों के माध्‍यम से व्‍यक्‍त किया जा सकता है। आर्यों ने अपनी सांस्‍कृति, धर्म और समाज का निर्माण वेदों, उपनिषदों, स्‍मृतियों, धर्मशास्‍त्रों और रामायण एवं महाभारत जैसे ग्रंथों के आधार पर किया है । ऋगवेद के पुरूषसूक्‍त श्‍लोक में इस पृथ्‍वी पर मानव निर्माण पर कहा गया है कि ब्रह्म के मुँह से ब्राह्मण पैदा हुए,  उसके कंधों से क्षत्रिय, जांघों से वैश्‍य एवं पैरों से शूद्र पैदा हुए । इसके विपरीत तथागत बुद्ध, रैदास, कबीर, नामदेव एवं नानक ने अपने संदेश में कहा कि सब मानव एक ही प्रक्रिया से पैदा होते हैं, कोई मनुष्‍य न तो किसी के मुंह से अथवा न तो किसी के पैरों से पैदा होते हैं । तथागत बुद्ध आगे कहते हैं कि शूद्र कौन हैं;

 

(i)         वह जो झूठ बोलता है वह शूद्र है।

(ii)        वह जो प्राणी हत्‍या करता है वह शूद्र है।

(iii)      वह जो चोरी करता है वह शूद्र है।

(iv)     वह जो व्‍यभिचार करता है वह शूद्र है।

(v)       वह जो नशे का सेवन एवं व्‍यापार करता है वह शूद्र है।

 

तथागत द्वारा बताए गए 5 सिद्धान्‍तों को पंचशील के सिद्धान्‍तों के रूप में माना जाता है।

 

इस लेखन के पैरा एक में मनु द्वारा निर्धारित अछूतों के अधिकारों का बहुत ही संक्षेप में मैने वर्णन किया है। इससे भी कहीं अधिक निषेध अछूतों के लिए धर्मशास्‍त्रों में प्रति-पादित किए गए हैं। यदि इसका निष्‍कर्ष निकाला जाए तो हम यही पाएंगे कि मात्र 63 वर्ष पहले अछूतों को शिक्षा, समानता, नौकरी, आत्‍मरक्षा, धन, भूमि प्राप्‍त करने का कोई भी अधिकार नहीं था।  आप सब इस बात से अवश्‍य सहमत होंगे कि यह सब अधिकार मनुष्‍य को अपने जीवन को सही प्रकार से निर्वहन करने के लिए अति आवश्‍यक है और इन के बिना अपने व्‍यक्तित्‍व को निखारना संभव नहीं है। 

 

इस देश की सभ्‍यता में 3500 वर्षों तक अछूतों ने पशुओं से भी बदतर जिंदगी जी है। स्‍वतंत्र भारत ने 26 जनवरी, 1950 को नया संविधान अपनाया था। पहली बार 5000 वर्षों के भारत के इतिहास में स्‍वतंत्रता, समानता, बन्‍धुत्‍व, न्‍याय,  लोकतांत्रिक-गणराज्‍य के सिद्धान्‍तों पर आधारित राष्‍ट्र एवं समाज बनाने का स्‍वप्‍न देखा है। पिछडों (OBC) अनुसूचित जातियों (SC) एवं अनुसूचित जनजातियों (ST) को राज्‍य की सेवाओं में और शिक्षण संस्‍थाओं में आरक्षण की व्‍यवस्‍था की गई। अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों को आरक्षण देने का आधार उनका सामाजिक पिछड़ापन है । छुआ-छूत जैसी गम्‍भीर समस्‍या से इस देश का समाज आज भी ग्रस्‍त है। शहरों और गांवों  के बीच तेज़ी से बढ़ती हुई खाई, चरमराती हुई शिक्षा व्‍यवस्‍था, सरकार का धीरे-धीरे शिक्षा व्‍यवस्‍था से पलायन (छोड़ना) SC, ST, OBC के लोगों की साधनहीनता और प्रतिदिन सरकार में कम होती नौकरियों की संख्‍या यह सुनिश्चित कर रही है कि इस देश में इन समुदाय के लोगों की प्रगति शीघ्र न हो

 

हाल ही में घोषित गरीबी के आंकड़ों के अनुसार यदि कोई व्‍यक्ति दिन में 25 रूपए खर्च करे तो वह गरीब नहीं है। यह इन लोगों के साथ कितना बड़ा उपहास है। यहां पर यह कहना उपयुक्‍त होगा कि  SC, ST, OBC के लोग ही मुख्‍यता गरीबों की संख्‍या में हैं। एक आंकड़े के अनुसार अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजातियों के बच्‍चों का शिक्षा छोड़ने की दर बहुत ऊचीं है।  100 विद्यार्थियों में से मात्र 8-9 ही 10वीं  कक्षा से आगे बढ़ पाते हैं। अनुसूचित जाति के 100 में से मात्र 4 या 5 व्‍यक्तियों को ही कोई सरकारी अथवा सरकारी संस्‍थानों में नौकरी प्राप्‍त हो पाती है। केन्‍द्र और राज्‍य सरकारों के उच्‍च पदों पर उनका कोई प्रतिनिधित्‍व (Representation) नहीं है। इस देश का शासन तंत्र आरक्षण को पूर्ण रूप से लागू करने के प्रति संवेदनशील नहीं है। योग्‍यता (Merit) को प्राप्‍त करने के माध्‍यम का जब तक लोकतांत्रिकरण एवं विकेन्‍द्रीयकरण (Decentralization) नहीं किया जाता तब तक योग्‍यता को सही रूप में मापा नहीं जा सकता।

 

आप सब को सुन कर हैरानी होगी कि कुछ दिन पहले एक डाक्‍यूमेंट्री फिल्‍म द्वारा पता चला कि आज भी पिछड़े वर्ग के बच्‍चों को स्‍कूलों में पढ़ाया नहीं जाता है। इनकी कॉपियां खाली होती हैं। बिना परीक्षा दिए पास कर दिया जाता है। इस वर्ग के बच्‍चों को जो अभी चौथी कक्षा में पढ़ते हैं उनसे शौचालय साफ करवाए जाते हैं । उच्‍च वर्ग के बच्‍चे उन के साथ बैठना नहीं चाहते। उनको नीचे बैठ कर पढ़ना होता है। खाना खाते समय उनका स्‍थान बाकी बच्‍चों से अलग होता है। इस प्रकार की व्‍यवस्‍था में योग्‍यता कैसे उभर सकती है। सौ में से मात्र 10 से भी कम अनुसूचित जाति के विद्यार्थी 10वीं कक्षा पास करते हैं। भारत की जनसंख्‍या में पिछड़ों, अनुसूचित जाति व जनजातियों की जनसंख्‍या 85% को मात्र 49% नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण बहुत ही छोटा उपाय है। हमें यह जानना चाहिए कि भारत के संविधान में मौलिक अधिकार एवं राज्‍य की नीति के निदेशक सिद्धान्‍तों (Directive Principles of State Policy) को शामिल किया गया है। अधिकार व्‍यक्तिगत हैं जबकि राज्‍य की नीति के निदेशक सिद्धांत लोगों के समूहों, पर्यावरण, सम्‍पदा के सही उपयोग एवं संरक्षण से संबंधित है। भारतीय संविधान का अनुछेद 15(4) और 16(4) में सामाजिक तौर पर पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण की व्‍यवस्‍था करता है।

 

पूरे विश्‍व में यहां भी लोकतान्त्रिक गणराज्‍य की शासन व्‍यवस्‍था है वहां पर शोषित, वंचित एवं पीछे रह गई लोगों के उत्‍थान के लिए विशेष प्रावधान किए गए हैं। यह प्रावधान शिक्षा, व्‍यवसाय एवं निजी क्षेत्र के उपक्रमों में भी हैं। संयुक्‍त राष्‍ट्र अमेरिका, ब्रिटेन, दक्षिणी अफ्रीका, आस्‍ट्रेलिया, न्‍युजीलैंड एवं कनाडा जैसे विकसित देशों में इस प्रकार की व्‍यवस्‍था है और उन को संवैधानिक मान्‍यता प्राप्‍त है। संयुक्‍त राष्‍ट्र अमेरिका को आजाद हुए करीब 237 वर्ष हो चुके हैं आज भी वहां पर विशेष  व्‍यवस्‍था है।

 

 क्‍योंकि लोकतांत्रिक गणराज्‍य की व्‍यवस्‍था देश के समाज में रहने वाले सभी वर्गो को प्रतिनिधित्‍व प्रदान करने की व्‍यवस्‍था है, इसलिए मेरा यह मानना है कि सभी वर्गों की प्रगति के बिना भारत एक सशक्‍त भारत बन कर विश्‍व में महत्‍वपूर्ण एवं प्रतिभावान देश नहीं बन सकता। इसलिए आरक्षण जैसे प्रावधानों का संविधान निर्माताओं ने प्रबंध किया है।

19वीं शताब्‍दी में सामाजिक क्रान्ति के नेता महात्‍मा ज्‍योतिराव फुले ने अपनी पुस्‍तक गुलामगिरी में यह कहा था मेरी यह इच्‍छा है कि जिस प्रकार संयुक्‍त राष्‍ट्र अमेरिका में अंग्रेज़ लोगों ने अपने अश्‍वेत भाइयों के उत्‍थान के लिए कार्य किया है उसी प्रकार भारत में उच्‍च जाति के लोग निम्‍न जातियों के लिए काम करें ।


काश ऐसे व्‍यक्ति भारत में भी पैदा हो और सामाजिक, आर्थिक सांस्‍कृतिक विषमता को समाप्‍त करें।

 

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